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Maha Shivratri 2020: शिव और माता पार्वती के मिलन की अनोखी कथा

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भगवान शिव और माता पार्वती का मिलन:

Padhe bhgwan shiv aur mata parvati ke milan ki anokhi katha
Maha Shivratri 2020
शिव और शक्ति एक-दूसरे के पूरक हैं। आज हम आपको बताएंगे इन दोनों का मिलन कैसे हुआ। भगवान शिव 'मंगल प्रदाता' हैं। इन्हीं शिवजी को अपने पति स्वरुप में पाने के लिए माता पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। इस दौरान पार्वती जी ने अन्न -जल त्याग दिया और केवल पत्ते (पर्ण) ग्रहण किये।

धीरे-धीरे उन्होंने पत्तों को भी त्याग दिया और उनका नाम 'अपर्णा' पड़ा। सभी देवता इस घोर तप को देखकर आश्चर्यचकित हुए और उन्होंने देवों के देव शिव जी से प्रार्थना की कि आप माता पार्वती की इच्छा पूर्ण करें।

सभी देवताओं की विनती सुन भगवान शिव ने सात ऋषियों (सप्त ऋषियों) को माता पार्वती की परीक्षा लेने के लिए भेजा। भगवान शिव की आज्ञा पाकर सप्त ऋषि पार्वती जी के पास जाके उन्हें शिवजी के अवगुण बताने लगे।

💥कुछ अनोखी बातें:

शिव जी की बुराइयां बताते हुए सप्त ऋषियों ने कहा कि आप उनसे विवाह की इच्छा त्याग दें, वरना आप सुखी नहीं रहेंगी। लेकिन देवी पार्वती को भगवान भोलेनाथ के सिवा किसी और से विवाह करना मंजूर नहीं था। वे महादेव को अपने पति के रूप में पाना चाहती थीं, इसीलिए उन्होंने बात सुनकर भी अनसुनी कर दी और अपनी तपस्या जारी रखी।

जैसे विवाह से पूर्व हर व्यक्ति अपने साथी को लेकर आश्वस्त और निश्चिंत हो जाना जाता है, उसी प्रकार भगवान शिव ने भी आश्वस्त हो जाना चाहा। इसीलिए अब वे स्वयं माता पार्वती की परीक्षा लेने पहुंचे। भगवान शिव ने माता पार्वती को दर्शन दिए और उन्हें वरदान दिया कि तुम्हें तुम्हारी तपस्या का फल अवश्य मिलेगा।

जैसे ही भगवान शिव अंतर्ध्यान हुए तभी पास में माता पार्वती को किसी बच्चे के चिल्लाने की आवाज़ आई। क्योंकि माता पार्वती बहुत ही कोमल ह्रदय हैं, तो वे दौड़कर उस स्थान पर पहुंची जहां से बच्चे के चिल्लाने की आवाज आ रही थी।

वहां जाकर उन्होंने देखा कि तालाब किनारे मगरमच्छ ने एक लड़के को पकड़ लिया है और उसे खींचकर अंदर की ओर ले जा रहा है। देवी पार्वती को देखकर लड़का चिल्लाने लगा "हे माता! आप मेरी रक्षा करें, मेरे मां-बाप या मित्र कोई भी संसार में नहीं है। इसीलिए मैं आपसे ही अपनी रक्षा की गुहार लगाता हूं।"

यह देखकर पार्वती माता कहने लगीं "इस लड़के को मत खाओ, इसे छोड़ दो।" मगरमच्छ ने जवाब दिया "दिन के छठे प्रहर में जो भी मुझे मिलता है, मैं उसे अपने आहार के रूप में स्वीकार करता हूं। मुझे आज छठे पहर में यह मिला है यानी इसे भगवान ने स्वयं मेरे लिए भेजा है, तो मैं अभी इसे नहीं छोड़ सकता।"

पार्वती जी बोलीं कि तुम्हें जो चाहिए तुम मुझसे कहो लेकिन इस बच्चे को छोड़ दो। मगरमच्छ बोला कि अगर आप इसके बदले में मुझे कुछ भी देने के लिए तैयार हैं, तो मेरी एक ही शर्त या इच्छा है कि आपने कठिन तपस्या करके महादेव से वरदान प्राप्त किया है। मुझे आप तप का फल दे देंगी तो मैं इसे छोड़ सकता हूं।

पार्वती जी ने कहा "मैं तैयार हूं। मैं तुम्हें अपना फल दे दूंगी लेकिन तुम्हें इस लड़के को छोड़ना होगा। मगरमच्छ ने समझाते हुए कहा "देवी आप चाहे तो फिर से सोच लें, जल्दबाजी में आकर कोई भी फैसला ना लें। मैं जानता हूं कि आपने कई हजार वर्षों तक इतना कठोर तप किया है, जो देवताओं के लिए भी असंभव है। इस बालक के प्राणों के बदले आप सच में मुझे सारा तप दे देंगी।

पार्वती जी ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया "मैंने निश्चय कर लिया है कि मैं तुम्हें अपने तप का फल दूंगी, बदले में इस बालक को जीवनदान दे दो।" मगरमच्छ ने देवी से तप का दान करने का संकल्प पढ़ने को कहा। जैसे ही पार्वती जी ने उसको तप का फल दिया तो मगरमच्छ का शरीर तप के प्रभाव से चमकने लगा। मगरमच्छ बोला "देखो तुम्हारे तप के फल से मैं कितना तेजस्वी हो गया हूं।

तुमने अपना पूरा तप और जीवन भर की पूंजी मुझे देकर इस बालक के लिए व्यर्थ कर दी। अगर इच्छा हो तो मैं तुम्हें एक और मौका दे सकता हूं। अपनी भूल का सुधार करो और इस बालक को मुझे ग्रहण करने दो, तुम्हें तुम्हारे तप का फल मिल जाएगा।"

पार्वती जी ने उत्तर दिया "माना मैंने अपने तप का सारा दान तुम्हें दे दिया लेकिन मैं तप दोबारा कर सकती हूं परंतु यदि इस बालक को तुम खा जाते तो इसका जीवन वापस नहीं मिल पाता। इसलिए मैंने कोई भूल नहीं की और मैं अपने निर्णय पर अडिग हूं।"

यह कहते ही वह लड़का और मगरमच्छ दोनों ही अंतर्ध्यान हो गए। अब पार्वती जी ने सोचा मैंने अपने तप का सारा फल इस मगरमच्छ को दे दिया। इसीलिए मुझे दोबारा तपस्या आरंभ करनी चाहिए। जैसे ही वे तपस्या के लिए बैठ रही थीं कि भगवान शिव वहां प्रकट हुए और बोले "हे पार्वती! अब आप तप क्यों कर रही हैं?"

इस प्रश्न पर पार्वती जी ने कहा कि हे प्रभु! मैंने अपने तप का फल दान कर दिया है, इसीलिए आपको अपने वर के रूप में प्राप्त करने के लिए संकल्पित होकर मुझे फिर से वैसा ही घोर तप करना होगा और मैं आपको पुनः प्रसन्न करूंगी। यह सुनकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और बोले कि देवी पार्वती यह बालक और मगरमच्छ दोनों रूपों में मैं ही तुम्हारी परीक्षा लेने आया था।

मैं यह देखना चाहता था कि प्राणी मात्र के दुख से क्या तुम्हारा मन भी दुखी होता है। उन्हीं के सुख दुख में तुम अपना सुख-दुख समझती हो या नहीं। इसीलिए मैंने यह सारी लीला रचाई थी। मगरमच्छ को तप देकर भी तुमने मुझे ही दिया है, इसीलिए तुम्हें और तपस्या करने की आवश्यकता नहीं है। मैं तुमसे प्रसन्न हूं और तुम्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार करता हूं।

यह सुनकर देवी पार्वती प्रसन्न हो गईं और उन्होंने भगवान शिव के चरण स्पर्श कर लिए। पार्वती ने भगवान शिव को प्रणाम किया। फिर कुछ समय पश्चात शिवरात्रि के दिन भगवान शिव अपनी बारात लेकर माता पार्वती के घर उन्हें ब्याहने पहुंच गए।

इस प्रकार भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह संपन्न हुआ। तभी से मान्यता है कि कन्याओं को वर प्राप्ति के लिए भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।

अपना बहुमूल्य समय देने के लिए आपका ,सहृदय धन्यवाद !!!

💬 सहयोग: अनविता कुमारी 

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