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Heart Touching Story: ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन

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Heart Touching Emotional Story:

Heart Touching Story
Heart Touching Story
सालों बाद जब अपने बचपन वाले घर लौटी,उस शहर की चकाचौंध से दूर । देखा तो पाया, कुछ नहीं बदला है वहां। बस कुछ बदला है तो वो है वक़्त। वो जो मैंने दीवार पर बनाकर छोटा सा खिलौना टांगा था, उसे आज भी वहीं पाया। 

पलंग के सिरहाने एक छोटे से कोने में अपना वो तोहफ़ा पाया जो सालों पहले मैने अपनी उस कार के लिए खरीदा था जो शायद हमारे पास उस समय थी ही नहीं । वो राखी आज भी वहीं टंगी है जब गुस्से में भाई ने तोड़कर एक अलमारी के हैंडल में बांध दी थी। 

वो भाई के द्वारा सजाई हुई तस्वीरें आज भी उस आइने के पास हैं । उस घर की दीवारों पर आज भी वो स्पर्श है जो लुका छुपी की याद दिलाता है। उस सबसे ऊंची अलमारी में ,जहां आज में पहुंच सकती हूं आसानी से, वहां उस बचपन में छुपाए पल याद आ गए। 

💥कुछ और बातें:

अपने कमरे की खिड़की के उस कांच पर चिपकी वो मेरी बनाई एक दोस्त की तस्वीर आज भी मुझे निहार रही है, बो पन्ना फट चुका है जैसे उसे भी इस वक़्त ने बदल दिया हो। उस घर में आज भी वही खुशबू है, जो फिर से संयुक्त परिवार बनाने को कहती है। 

वो मूर्ति आज भी उसी जगह मंदिर में है, "जिससे जो मांगो वो मिल जाता है" को सच मानकर मैंने स्थापित की थी। सब कुछ है यहां पर फिर भी गुम है कुछ। अपने जो थे यहां वो अब यहां नहीं, अपनापन है बहुत पर किसको दिखाएं। देखने वाले यहां नहीं। 


अलमारी में रखे भाई के कपड़ों को पहनकर घुम रही थी आज मैं, वक़्त की नज़ाकत देखो, मां को अपने बेटे के घर में होने का एहसास हुआ। इस दौर में लोगों से आगे निकल ने  की दौड़ में पीछे रह गईं है वो खुशियां जिन्हें फिर से जीना चाहते हैं हम। 

अब बस मिलते हैं तो सिर्फ त्योहारों पर, जो नाममात्र रह गए हैं। उन त्योहारों में भी हमारा बचपन नज़र नहीं आता क्योंकि दो दिन की छुट्टी तो बस अब समान बांधने में ही निकल जाती है। 

घुम रही हूं बेचैन सी, पूरे घर में आज भी आवाजें सुनाई दे रही हैं वो , "एक दो तीन…...बीस। आ जाऊं? आजा।" पुकार रही हैं शायद हमें फिर से खेलने के लिए वो बचपन वाले खेल। करने को वो सारी हरकतें जो अब मुमकिन नहीं इस भागदौड़ में। याद है? 

पर्दे के पीछे छुपना तेरा जिसमें मैं गोल गोल घूम जाया करती थी पर तू पकड़ में ना आता था। मुझे याद है। कभी थक जाओ इस रोज़मर्रा की ज़िंदगी से तो मिलेंगे यहीं दोबारा हम। उन शहरों की भागदौड़ से दूर एक सुकून की सांस लेने, अपने घर में। 

शहर के प्रदूषण, बीमारियों और कमाने की चिंता छोड़, बस दो वक़्त का खाना खाने लायक कमाकर सुकून कि जिंदी जीने के लिए एक साथ फिर रहेंगे हम। जिएंगे वही पल दोबारा हम। खुशियों के लिए, हर एक उस पल के लिए जिसमें हम साथ हों । फिर बस "ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन।"

अपना बहुमूल्य समय देने के लिए आपका ,सहृदय धन्यवाद !!!

💬 सहयोग: ज्योति प्रजापति 

नोट:  प्रिय पाठकों, आपसे विनम्र निवेदन है यदि आपको इस लेख में कही भी , कोई भी त्रुटि नजर आती है या आप कुछ सुझाव देना चाहते है, तो कृपया नीचे दिए गए टिप्पणी स्थान ( Comment Box) में अपने विचार व्यक्त कर सकते है, हम अतिशीघ्र उस पर उचित कदम उठायेंगे । 

4 टिप्‍पणियां:

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