Positive Vs Negative Energy:
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प्रकृति ऊर्जा का भंडार है। संसार में प्रत्येक वस्तु में ऊर्जा निहित है। मनुष्यों में ऊर्जा, कार्य करने के लिए और कठिन परिस्थितियों में खरे उतरने के लिए प्रेरित करती है। मनुष्यों के अंदर की ये ऊर्जा दो प्रकार की होती है:
1. सकरात्मक ऊर्जा 2. नकारात्मक ऊर्जा ।
यही ऊर्जा मनुष्य की सद्गति और दुर्गति निश्चित करती है। जब वह किसी कार्य के लिए बढ़ता है तो उसे ये दोनों ऊर्जाएं प्रेरित करती है।ये ऊर्जाएं मनुष्य को कैसे प्रेरित करती है ये जानने से पहले हमें इनके सन्दर्भ में जानना आवश्यक है।
सकारात्मक ऊर्जा वह शक्ति है जिसके कारण मनुष्य कठिन से कठिन काम आसानी से कर लेता है। इसके कारण जीव का विकास होता है। इस ऊर्जा से प्रेरित सभी कार्य शुभ होते हैं और इनका परिणाम फलदायी होता है। आदि काल से सकारात्मक ऊर्जा मनुष्य की समृद्धि का प्रतीक रही है।
इसीलिए इसे धनात्मक ऊर्जा भी कहते हैं। वैरागी से लेकर गृहस्थ तक इसके कारण अपने लक्ष्य की प्राप्ति करते हैं। यह उचित है कि लक्ष्य की प्राप्ति आसान नहीं होती है ढेरों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है लेकिन यदि सकरात्मक भाव से सफ़लता के पथ पर चला जाए तो मार्ग में आने वाली प्रत्येक शिला समान बाधा छोटे कंकड की भाँति दिखाई देने लगती है।
धैर्य के साथ साथ इस ऊर्जा से विवेक, साहस, ज्ञान, विनम्रता आदि गुणों की भी प्राप्ति होती है। जिस किसी के पास ये गुण होते हैं वह कठिन समय में भी सुख के साथ जीवन व्यतीत करता है। इसी सन्दर्भ मे महाकवि तुलसीदास ने कहा कि
अर्थात विपत्ति के समय ज्ञान, विनम्रता पूर्वक व्यवहार, विवेक, साहस, अच्छे कर्म, आपका सत्य और राम (भगवान ) का नाम ये चीजें मनुष्य का साथ देती है।
इसी प्रकार नकारात्मक ऊर्जा वह शक्ति है जिसके कारण सहज कार्य भी कठिन दिखाई देने लगते हैं। जीव इसके कारण स्वयं को दुर्बल समझने लगता है। इस ऊर्जा के प्रभाव से मनुष्य का पतन निश्चित हो जाता है। इस से प्रेरित कार्य विघ्न पूर्ण व घातक होते हैं।
नकारात्मकता से व्यक्ति गर्त में चला जाता है और उसका सर्वनाश हो जाता है। इसी वज़ह से इसे ऋणात्मक ऊर्जा भी कहा जाता है। यह ऊर्जा मनुष्य मे अज्ञानता, क्रोध, आलस्य, उद्दंडता , विवेकहीन, डरपोक आदि अवगुणों को जन्म देती है। नकारात्मक ऊर्जा के कारण ही महान पराक्रमी होने के बाद भी रावण, हिरण्यकशिपु जैसे असुरों का सर्वनाश हो गया। गीता में भी लिखा है-
अर्थात् काम, क्रोध और लालच ये तीन तरह के अवगुण (द्वार) आत्मा का नाश करने वाले हैं। ये तीनों ही इंसान को बुरी गति में ले जाने वाले है। इस प्रकार इन्हें त्याग देना चाहिए।
आइए अब जानते हैं कि यह मनुष्य को किस प्रकार प्रेरित करती हैं,
जब भी हम कोई काम करने के लिए आगे बढ़ते हैं या सोचते हैं तो हमारे मन में सदैव दो विचार उत्पन्न होते हैं। हम उस कार्य से होने वाली लाभ-हानि सोचने लगते हैं । ये विचार सकारत्मक व नकारात्मक ऊर्जा के कारण उत्पन्न होने लगते हैं।
विचार में सकारात्मकता की मात्रा अधिक होने पर कार्यफल लाभदायक होता है और नकारात्मकता की मात्रा अधिक होने पर कार्य विफल हो जाता है। इस प्रकार ये अनुमान लगाया जा सकता है कि सकारात्मकता जीवन में कितनी आवश्यक है। इसीलिए तो परेशान होने पर लोग एक दूसरे से बोलते हैं - बी पॉजिटिव अर्थात् सकारत्मक रहो।
नकारात्मक सोच व्यक्ति की जान ले लेती है। एक बार अमेरिका मे एक कैदी को फाँसी दी जानी थी तो जेलर ने सोचा कि क्यों न इस कैदी पर कोई प्रयोग किया जाए उसने उस कैदी से कहा कि तुम्हें भयानक काले नाग से डसा कर मारा जाएगा। इस बात को सुनकर कैदी के मन मे नकारत्मक ऊर्जा का प्रवाह तीव्र हो गया और वह भयभीत हो गया।
दूसरे दिन उसके चेहरे को काले कपड़े से ढककर दो सुई चुभाई गयी। कैदी के अंदर डर होने की वज़ह से वह उसी समय मर गया। पोस्टमार्टम के बाद पता चला कि कैदी के शरीर मे साँप जैसे ख़तरनाक जीव के विष होने की वज़ह से उसकी मौत हो गई दरअसल शरीर मे सकरात्मक व नकारत्मक विचार से हार्मोन का स्राव होता है और कैदी के भयभीत होने पर नकारात्मक भाव बढ़ने से शरीर विषैले हार्मोन स्रावित करने लगा जिसके कारण उसकी मौत हो गई।
इसी प्रकार वर्तमान मे हम हर जगह फैली बीमारी से अवगत है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 नाम दिया है। अब तक इस बीमारी के चपेट मे लगभग लाखो लोग आ चुके हैं और हज़ारो लोग की जान भी जा चुकी है। लेकिन इस महामारी का कोई इलाज अभी तक नहीं मिल पाया है उससे निपटने के लिए हम सब को धैर्य और सकारात्मकता की आवश्यकता है।
इस कठिन समय मे सकरात्मक ऊर्जा ही एकमात्र औषधि है। जिस प्रकार सकारात्मक ऊर्जा से हर लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है उसी प्रकार हम सब भी इस महामारी से बच सकते हैं। प्रकृति में उपस्थित प्रत्येक जीव परस्पर सहयोगी है। इन सूक्ष्म जीवों से डरने के बजाय विवेक, साहस, ज्ञान के साथ इस पर विजय प्राप्त करनी चाहिए।
1. सकरात्मक ऊर्जा 2. नकारात्मक ऊर्जा ।
यही ऊर्जा मनुष्य की सद्गति और दुर्गति निश्चित करती है। जब वह किसी कार्य के लिए बढ़ता है तो उसे ये दोनों ऊर्जाएं प्रेरित करती है।ये ऊर्जाएं मनुष्य को कैसे प्रेरित करती है ये जानने से पहले हमें इनके सन्दर्भ में जानना आवश्यक है।
सकारात्मक ऊर्जा वह शक्ति है जिसके कारण मनुष्य कठिन से कठिन काम आसानी से कर लेता है। इसके कारण जीव का विकास होता है। इस ऊर्जा से प्रेरित सभी कार्य शुभ होते हैं और इनका परिणाम फलदायी होता है। आदि काल से सकारात्मक ऊर्जा मनुष्य की समृद्धि का प्रतीक रही है।
इसीलिए इसे धनात्मक ऊर्जा भी कहते हैं। वैरागी से लेकर गृहस्थ तक इसके कारण अपने लक्ष्य की प्राप्ति करते हैं। यह उचित है कि लक्ष्य की प्राप्ति आसान नहीं होती है ढेरों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है लेकिन यदि सकरात्मक भाव से सफ़लता के पथ पर चला जाए तो मार्ग में आने वाली प्रत्येक शिला समान बाधा छोटे कंकड की भाँति दिखाई देने लगती है।
💥कुछ विशेष बातें:
एक छोटी चींटी अपने भार से अधिक चीनी के दाने को इसी सकरात्मक भाव के दम पर उठा कर अपने साथ ले जाती है। सकारात्मकता व्यक्ति को धर्यवान बनाती है और धैर्यवान मनुष्य कभी विफल नहीं होते हैं।धैर्य के साथ साथ इस ऊर्जा से विवेक, साहस, ज्ञान, विनम्रता आदि गुणों की भी प्राप्ति होती है। जिस किसी के पास ये गुण होते हैं वह कठिन समय में भी सुख के साथ जीवन व्यतीत करता है। इसी सन्दर्भ मे महाकवि तुलसीदास ने कहा कि
तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक । साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक ।।
अर्थात विपत्ति के समय ज्ञान, विनम्रता पूर्वक व्यवहार, विवेक, साहस, अच्छे कर्म, आपका सत्य और राम (भगवान ) का नाम ये चीजें मनुष्य का साथ देती है।
इसी प्रकार नकारात्मक ऊर्जा वह शक्ति है जिसके कारण सहज कार्य भी कठिन दिखाई देने लगते हैं। जीव इसके कारण स्वयं को दुर्बल समझने लगता है। इस ऊर्जा के प्रभाव से मनुष्य का पतन निश्चित हो जाता है। इस से प्रेरित कार्य विघ्न पूर्ण व घातक होते हैं।
नकारात्मकता से व्यक्ति गर्त में चला जाता है और उसका सर्वनाश हो जाता है। इसी वज़ह से इसे ऋणात्मक ऊर्जा भी कहा जाता है। यह ऊर्जा मनुष्य मे अज्ञानता, क्रोध, आलस्य, उद्दंडता , विवेकहीन, डरपोक आदि अवगुणों को जन्म देती है। नकारात्मक ऊर्जा के कारण ही महान पराक्रमी होने के बाद भी रावण, हिरण्यकशिपु जैसे असुरों का सर्वनाश हो गया। गीता में भी लिखा है-
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन:। काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।।
अर्थात् काम, क्रोध और लालच ये तीन तरह के अवगुण (द्वार) आत्मा का नाश करने वाले हैं। ये तीनों ही इंसान को बुरी गति में ले जाने वाले है। इस प्रकार इन्हें त्याग देना चाहिए।
आइए अब जानते हैं कि यह मनुष्य को किस प्रकार प्रेरित करती हैं,
जब भी हम कोई काम करने के लिए आगे बढ़ते हैं या सोचते हैं तो हमारे मन में सदैव दो विचार उत्पन्न होते हैं। हम उस कार्य से होने वाली लाभ-हानि सोचने लगते हैं । ये विचार सकारत्मक व नकारात्मक ऊर्जा के कारण उत्पन्न होने लगते हैं।
विचार में सकारात्मकता की मात्रा अधिक होने पर कार्यफल लाभदायक होता है और नकारात्मकता की मात्रा अधिक होने पर कार्य विफल हो जाता है। इस प्रकार ये अनुमान लगाया जा सकता है कि सकारात्मकता जीवन में कितनी आवश्यक है। इसीलिए तो परेशान होने पर लोग एक दूसरे से बोलते हैं - बी पॉजिटिव अर्थात् सकारत्मक रहो।
नकारात्मक सोच व्यक्ति की जान ले लेती है। एक बार अमेरिका मे एक कैदी को फाँसी दी जानी थी तो जेलर ने सोचा कि क्यों न इस कैदी पर कोई प्रयोग किया जाए उसने उस कैदी से कहा कि तुम्हें भयानक काले नाग से डसा कर मारा जाएगा। इस बात को सुनकर कैदी के मन मे नकारत्मक ऊर्जा का प्रवाह तीव्र हो गया और वह भयभीत हो गया।
दूसरे दिन उसके चेहरे को काले कपड़े से ढककर दो सुई चुभाई गयी। कैदी के अंदर डर होने की वज़ह से वह उसी समय मर गया। पोस्टमार्टम के बाद पता चला कि कैदी के शरीर मे साँप जैसे ख़तरनाक जीव के विष होने की वज़ह से उसकी मौत हो गई दरअसल शरीर मे सकरात्मक व नकारत्मक विचार से हार्मोन का स्राव होता है और कैदी के भयभीत होने पर नकारात्मक भाव बढ़ने से शरीर विषैले हार्मोन स्रावित करने लगा जिसके कारण उसकी मौत हो गई।
इसी प्रकार वर्तमान मे हम हर जगह फैली बीमारी से अवगत है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 नाम दिया है। अब तक इस बीमारी के चपेट मे लगभग लाखो लोग आ चुके हैं और हज़ारो लोग की जान भी जा चुकी है। लेकिन इस महामारी का कोई इलाज अभी तक नहीं मिल पाया है उससे निपटने के लिए हम सब को धैर्य और सकारात्मकता की आवश्यकता है।
इस कठिन समय मे सकरात्मक ऊर्जा ही एकमात्र औषधि है। जिस प्रकार सकारात्मक ऊर्जा से हर लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है उसी प्रकार हम सब भी इस महामारी से बच सकते हैं। प्रकृति में उपस्थित प्रत्येक जीव परस्पर सहयोगी है। इन सूक्ष्म जीवों से डरने के बजाय विवेक, साहस, ज्ञान के साथ इस पर विजय प्राप्त करनी चाहिए।
अपना बहुमूल्य समय देने के लिए आपका ,सहृदय धन्यवाद !!!
💬 सहयोग: उत्कर्ष वर्मा
नोट: प्रिय पाठकों, आपसे विनम्र निवेदन है यदि आपको इस लेख में कही भी , कोई भी त्रुटि नजर आती है या आप कुछ सुझाव देना चाहते है, तो कृपया नीचे दिए गए टिप्पणी स्थान ( Comment Box) में अपने विचार व्यक्त कर सकते है, हम अतिशीघ्र उस पर उचित कदम उठायेंगे ।
utkarsh verma never fails to motivate anyone ❤️
जवाब देंहटाएंNice.👌
जवाब देंहटाएंNice👌
जवाब देंहटाएंGood
जवाब देंहटाएंNyc..!
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