Home Top Ad

Rabindranath Jayanti 2020: मानवता को देशभक्ति से आगे रखते थे, टैगोर

Share:

मानवता को देशभक्ति से ऊपर रखते थे, टैगोर:

मानवता को देशभक्ति से आगे रखते थे, टैगोर
Rabindranath Jayanti


रविंद्रनाथ टैगोर के बारे में हम में से ज्यादातर लोग बस इतना ही जानते हैं कि वे पहले गैर-यूरोपियन थे, जिन्हें नोबेल पुरस्कार मिला और जिन्होंने देश का राष्ट्रगान लिखा है। पर इन सबके अलावा रविंद्रनाथ एक बहुमुखी प्रतिभा के मालिक थे, जिन्होंने कविताएं लिखी, कहानियां लिखीं, पेंटिंग्स भी बनाईं और देश की आजादी में एक खास भूमिका अदा की। 


टैगोर की शुरूआती जिंदगी: 

रविंद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 में हुआ था। अपने भाई-बहनों में वे सबसे छोटे और तेरहवीं संतान थे। 1878 में वह अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड गए। आठ साल की उम्र में उन्होंने पहली कविता लिखी, सोलह साल की उम्र में उन्होंने कहानियां और नाटक लिखना प्रारंभ कर दिया था। 

उन्हें आमतौर पर 20वीं शताब्दी के शुरूआती भारत के महान रचनात्मक कलाकार के रूप में भी माना जाता है। 1913 में वे साहित्य के नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले नॉन यूरोपियन बने। 

रविंद्रनाथ टैगोर एक ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाओं को दो देशों ने अपना राष्ट्रगान बनाया। भारत और बांग्लादेश दोनों देशों के राष्ट्रगान के रचयिता रविंद्रनाथ टैगोर ही हैं। श्रीलंका का राष्ट्रगान भी टैगोर के ही कविताओं से प्रेरित होकर लिखा गया था।

रविंद्रनाथ टैगोर का जन्म देवेंद्रनाथ टैगोर और सरदा देवी जोरासांको हवेली में हुआ था, जो कोलकाता में टैगोर परिवार का पैतृक घर है। वे बहुत छोटे ही थे, जब उनकी मां गुजर गईं। उनके पिता एक यात्री थे और इसलिए उन्हें ज्यादातर उनके नौकरों और नौकरानियों ने पाला। 


उन्होंने अपने पेननेम भानुसिम्हा नाम से अपनी कलाकृतियों को प्रकाशित करना शुरू कर दिया। 1877 में उन्होंने ‘भिखारिनी’ और 1882 में कविताओं का संग्रह ‘संध्या संगीत’ लिखा। 

उन्हें स्कूल लर्निंग में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी और बाद में उन्होंने कानून सीखने के लिए लंदन के यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और उन्होंने इसे छोड़ दिया और शेक्सपियर के विभिन्न रचनाओं को देखना और परखना शुरू किया। 

उन्होंने अंग्रेजी, आयरिश और स्कॉटिश साहित्य और संगीत का सार भी सीखा। भारत लौटकर उन्होंने मृणालिनी देवी से शादी की। 

रविंद्रनाथ टैगोर को गुरूदेव नाम गांधीजी ने दिया था और वे गुरूदेव के नाम से मशहूर हो गए। 

💥शांतिनिकेतन की स्थापना:

टैगोर ने गांव के जीवन का बहुत करीब से देखा था। वह किसानों-काश्तकारों के जीवन में फैले अशिक्षा के अंधकार को मिटाना चाहते थे। उन्होंने महसूस किया कि देश के विकास के लिए गरीब किसानों का विकास जरूरी है। 

इस सपने को साकार करने के लिए उन्होंने कोलकाता से लगभग 150 किलोमीटर दूर शातिंनिकेतन में किसानों और काश्तकारों के बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल खोला। 1901 में उन्होंने ने शांतिनिकेतन में एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना की, जहां उन्होंने भारत और पश्चिमी परंपराओं के साथ लाने की कोशिश की। वह विद्यालय में ही स्थायी रूप से रहने लगे और 1921 में यह विश्व भारती विद्यालय बन गया।


क्यों वापस की नाइटहुड की उपाधि?

16 अक्टूबर 1905 को रविंद्रनाथ के नेतृत्व में कोलकाता में मनाया गया रक्षाबंधन उत्सव से बंग-भंग आंदोलन का आरंभ हुआ। इसी आंदोलन ने भारत में स्वदेशी आंदोलन शुरू किया। 

टैगोर ने विश्व के सबसे नरसंहारों में से एक जालियांवाला कांड की घोर निंदा की और इसके विरोध में उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई, नाइटहुड की उपाधि लौटा दी। 

नाइटहुड मिलने पर नाम के साथ सर लगाया जाता है। हालांकि ब्रिटिश सरकार की तरफ से कोशिश की गई कि वे वापस अपना सम्मान ले लें पर उन्होंने नहीं लिया। 

रविंद्रनाथ टैगोर राजनीति में भी सक्रिय थे। वह भारतीय राष्ट्रवादियों के पूर्ण समर्थन में थे। साथ ही साथ वो ब्रिटिश सरकार के घोर विरोधी भी थे। उनकी रचना ‘मैनास्ट’ में उनके राजनीतिक विचार शामिल हैं। उन्होंने कई देशभक्ति गीत भी लिखे। 

रविंद्रनाथ टैगोर ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए प्रेरणा दिया करते थे। उन्होंने देशभक्ति के लिए कुछ रचनाएं लिखीं। इस तरह के कामों के लिए जनता के बीच बहुत प्यार था। यहां तक कि महात्मा गांधी ने भी उनके कामों के लिए उनकी तारीफ की। 

आखिरी दिनों में पेंटिंग की तरफ बढ़ने लगा रूझान:


टैगोर कहा करते थे कि मुझे हर सवेरा सुनहरी किनारे वाला लिफाफा सा लगता है, जो मेरे लिए कोई अनसुना समाचार लाया हो। रविंद्रनाथ एक प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक थे। उनके लंबे बाल, लहराती हुई दाढ़ी और ऊंची पतली काया की वजह से किसी साधु की तरह दिखते थे।

प्रोस्टेट कैंसर की वजह से उनकी मौत 7 अगस्त 1941 को हो गई। टैगोर का लोगों के बीच इतना प्यार था कि लोग उनकी मौत के बारे में चर्चा नहीं करना चाहते थे। 

अपने जीवन के आखिरी सालों में उनका रूझान पेंटिंग की तरफ हो गया। उन्होंने लगभग तीन हजार पेंटिंग्स बनाईं। आजादी से जुड़े आंदोलनों का टैगोर खुलकर समर्थन करते थे। साथ ही टैगोर मानते थे कि देशभक्ति चारदीवारी से बाहर विचारों से जुड़ने की आजादी से हमें रोकती है।

 साथ ही दूसरे देशों की जनता के दुख दर्द को समझने की आजादी को भी सीमित कर देती है। टैगोर के विचारों में बेमानी और अवैज्ञानिक परंपरावाद का भी विरोध किया करते थे। 

रविंद्रनाथ की कहानियों में से काबुलीवाला, मास्टर साहब और पोस्टमास्टर आज भी लोकप्रिय कहानियां हैं।


अपना बहुमूल्य समय देने के लिए आपका ,सहृदय धन्यवाद !!!

💬 सहयोग: नबीला शागुफ़ी 

नोट:  प्रिय पाठकों, आपसे विनम्र निवेदन है यदि आपको इस लेख में कही भी , कोई भी त्रुटि नजर आती है या आप कुछ सुझाव देना चाहते है, तो कृपया नीचे दिए गए टिप्पणी स्थान ( Comment Box) में अपने विचार व्यक्त कर सकते है, हम अतिशीघ्र उस पर उचित कदम उठायेंगे ।

कोई टिप्पणी नहीं

Please do not enter any spam Link in the comment box. If you have any queries, Let me know!